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भारत का प्रतिनिधित्व करते हुये माणेकराव अखाड़ा टीम ने जीता स्वर्ण

साउथ एशियन फेडरेशन स्पोर्ट्स में पहली बार शामिल एरियल सिल्क खेल में मिली सफलता

लखनऊ।

साउथ एशियन फेडरेशन फॉर ऑल स्पोर्ट्स के तत्वाधान में आयोजित हुयी अन्तर्राष्ट्रीय खेलों में पहली बार शामिल किये गये एरियल सिल्क खेल में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुये माणेकराव अखाड़ा की टीम ने स्वर्णपदक हासिल किया। काठमाण्डू नेपाल में हुयी इस स्पर्धा में वार्डविजर्ड इनोवेशंस एण्ड मोबिलिटी के प्रोत्साहन से शामिल हुयी वड़ोदरा के इस अखाड़ा के दस से 14 वर्ष के आयुवर्ग की छात्राओं की टीम ने एरियल सिल्क और रोप मल्खम आदि खेलों में बेहतरीन प्रदर्शन कर स्वर्ण पदक जीतने में सफलता प्राप्त की। साउथ एशियन फेडरेशन फॉर ऑल स्पोर्ट्स में पहली बार प्रदर्शित किये एरियल सिल्क खेल के बारे में जानकारी देते हुये स्वर्णित सफलता हासिल करने वाली टीम के कोच मेनेजर विक्रम खिडकीकर ने बताया कि काठमांडू में खेले गये साउथ एशियन चैम्पियनशिप में पहली बार एरियल गेम को दाखिल किया गया था। इस खेल का उद्देश बच्चो को छोटी उम्र से ही तंदुरस्ती, फ्लेक्सिबिलिटी आदि का महत्व समझाने का है। एरियल सिल्क में खासकर योग आधारित स्कील्स दिखाए जाते हैं, जिससे बच्चे छोटी उम्र से ही स्वस्थ और तंदुरस्त बनते हैं। वहीं कोच सुधिर धानकर ने बताया कि एरियल सिल्क में 20-25 फीट की ऊंचाई पर लगाए गये सिल्क के लंबे 1-2 कपडे पर खिलाडी अपने शरीर के अलग-अलग अंगो को मरोड के करतब दिखाते हैं। इस खेल में काबिल होने के लिए शरीर के हर एक अंग का लचीला होना आवश्यक है। एरियल सिल्क में तीन चीजे आवश्यक है, जिसमें क्लाईम्ब यानी की सिल्क के कपडे को पकड के ऊंचाई तक पहुंचना, रेप यानी हवा में रहकर ही कपडे को शरीर के साथ लिपटा के करतब दिखाना और अंत में ड्रोप यानी करतब खतम कर के नीचे उतरना। इन तीनो के आधार पर खिलाडी को अंक दिये जाते हैं। वर्तमान समय में लोगो में एरियल योग का भारी क्रेज है। पर एरियल सिल्क और एरियल योग दोनो में अंतर है। एरियल योग में जमीन और रोप दोनो का प्रयोग सामिल है, जब की एरियल सिल्क में जमीन से उपर हवा में जिम्नास्टिक के करतब किये जाते हैं। भारत में धीरे धीरे एरियल सिल्क का खेल लोकप्रिय हो रहा है। विशेष रूप से 8-14 साल की आयु के बच्चो के पालक अपने बच्चो की शारीरिक और मानसिक मजबूती के लिए उनको एरियल सिल्क की शिक्षा दिला रहे हैं।

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